सूर्य अर्घ्य का उचित समय

सूर्य अर्घ्य का उचित समय

के सभी आगंतुकों का ह्रदय से अभिनन्दन जैसा की आप जानते ही हैं की सूर्य सम्पूर्ण जगत की आत्मा है। बिना सूर्य के चराचर जगत के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सूर्य यश, मान, प्रतिष्ठा, उन्नति, आत्मविश्वास के कारक हैं। सूर्य देव ने ही दैत्यों को हराकर देवताओं का साम्राज्य पुनःस्थापित किया था। आज हम जानेंगे क्यों दिया जाता है सूर्य देवता को अर्घ्य। इसका क्या महत्व है? क्या है सूर्य अर्घ्य की सही विधि? और इस विधि को अपनाने से हमें क्या लाभ प्राप्त होते हैं?

यदि आप विद्यार्थी हैं, नौकरीशुदा वयस्क हैं, अत्याधिक परिश्रम में बावजूद आपकी प्रमोशन नहीं हो रही है, आपके साथ छलकपट हो रहा है, आप बारबार राजनीति के शिकार हो रहे हैं, आपके पिता के साथ आपके सम्बन्ध ठीक नहीं हैं, हड्डियों में दर्द होता है तो सूर्य देव की उपासना परम सहायक है।

सूर्य अर्घ्य का उचित समय

प्रातःकाल में सूर्य उदय के समय जब सूर्य उदित होना प्रारम्भ करते हैं और आकाश में हल्की हल्की लालिमा दिखाई देनी शुरू होती है, यह सूर्य अर्घ्य के लिए सर्वोत्तम समय है। यदि किसी कारणवश इस समय आप अर्घ्य नहीं दे पाए तो दाएं कान को छूकर तीन बार सूर्य देव को अर्घ्य दें और इसके बाद फिर से प्रायश्चित स्वरूप एक बार दाएं कान को छूकर अर्घ्य देना चाहिए। लेकिन रोजाना लेट उठना और प्रायश्चित कर लेना किसी भी प्रकार से तर्क संगत नहीं है।

लेट उठने से सूर्य देव का उतना सकारात्मक प्रभाव प्राप्त नहीं किया जा सकता है जितना की सूर्योदय के समय फिर भी यदि आपना ईट शिफ्ट में काम करते हैं या किन्ही दुसरे कारणों से जल्दी नहीं उठ पाते हों तो लेट ही अर्घ्य अवश्य दें।

सूर्य अर्घ्य की विधि

पूर्वाभि मुख होकर अथवा सूर्य की और मुख करें, गंध (चन्दन), पुष्प (फूल), अक्षत को जल में मिलाकर तीन अर्घ्य दें। गायत्री मन्त्र से जल को अभिमंत्रित करें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें। ऐसा तीन बार करें। गायत्री मंत्र के स्थान पर सूर्य मंत्र “ॐब्रम्हस्वरूपिणे श्री सूर्यनारायणाय नमः” का प्रयोग भी किया जा सकता है। एक बार मन्त्र का उच्चारण करें फिर जल अर्पित करें। ऐसा तीन बार करें। जिस स्थान पर जल अर्पित करना हो उसे पहले साफ़ करलें। जल को किसी पात्र  में गिराएं और अपनी आँखों या माथे से लगाने के बाद किसी वृक्ष की जड़ में डाल दें। यदि वृक्ष में न डाल पाएं तो गमले में डाल दें। यदि ऐसा भी संभव न हो तो निर्माल्य (जल) को नाक से सूंघ लें और वाश बेसिन में डाल दें। यदि आप भगवान के निर्माल्य को सूंघ लें तो वह आप का निर्माल्य हो जाता है। इसके बाद आप जल को कहीं भी डाल दें आपको दोष नहीं लगेगा। ऐसा न करने पर अथवा जल पैरों में लगने पर दोष लगता है।

जल अर्पित करने के लिए आप ताम्बे, पीतल अथवा किसी भी पात्र को जल से भरलें और अपने दोनों हाथों की अंजलि बनाकर उसमे पात्र को रखें। अपने दोनों हाथों के अंगूठों को तर्जनी ऊँगली से अलग रखें और गायत्री मंत्र से जल को अभिमंत्रित करके सूर्य देव को जल अर्पित करें। यदि जल नदी में खड़े होकर अर्पित किया जाए तो श्रेष्ठ है। यदि नदी पास में न हो तो घर में ही अर्पित करें।