धार्मिक विचार – भाग 2

धार्मिक विचार – भाग 2

ईश्वर का मौन हमारे बहरेपन का परिणाम है
जब हमारा हृदय ईश्वर की वाणी सुनने को तैयार नहीं होता, तब देवता भी हमें आशीर्वाद देने में मौन हो जाते। आध्यात्मिक संबंध एकतरफा नहीं हो सकता—श्रद्धा, संवेदना और आंतरिक शुद्धता आवश्यक हैं।

मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है
मनुष्य का जन्म तो सहज होता है, लेकिन मनुष्यता को प्राप्त करना एक सतत और कठिन साधना है। वह व्यवहार, संवेदनशीलता और आत्मसंयम से अर्जित होती है।

सादगी ही सच्ची सभ्यता है
जीवन में सादगी, अपने लिए कठोर अनुशासन और दूसरों के प्रति सहिष्णुता ही वास्तविक सभ्यता के प्रतीक हैं। ये गुण मनुष्य को भीतर से समृद्ध बनाते हैं।

अवास्तविक महात्वाकांक्षा दुख का कारण बनती है
यदि कोई व्यक्ति अपनी योग्यता और परिस्थिति को ध्यान में रखे बिना बड़ी आकांक्षाएं पालता है, तो वह न केवल दुखी रहता है, बल्कि उपहास का पात्र भी बनता है।

कर्मशीलता लेखनी से बड़ी होती है
पढ़ने योग्य लिखना श्रेष्ठ है, लेकिन उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि जीवन ऐसा जिया जाए जो स्वयं दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन जाए। कार्य स्वयं सबसे बड़ा संदेश होता है।

सीखने की इच्छा ही सच्चा ज्ञान है
अनजान होना कोई अपराध नहीं, लेकिन सीखने के प्रति उदासीनता निश्चित ही आत्मविकास में सबसे बड़ी बाधा है। जिज्ञासा और विनम्रता ही ज्ञान की राह खोलते हैं।

असफलता आत्ममंथन का संकेत है
जब प्रयास पूरे मन से नहीं होते, तब असफलता ही उनका स्वाभाविक परिणाम होती है। यह केवल एक रुकावट नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का अवसर भी है।