जब परिवर्तन योग हो जाता है महायोग

जब परिवर्तन योग हो जाता है महायोग

आज की हमारी चर्चा का विषय है परिवर्तन योग इसे गृह अथवा राशि परिवर्तन योग भी कहा जाता है। यह योग दो राशियों के स्वामियों के आपस में राशि परिवर्तन से बनता है। यह योग पूर्णतया सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी कहने का अभिप्राय है की यह योग जातक/जातिका के जीवन को सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित कर सकता है। जब सकारात्मकता प्रदान करता है तो यही योग महायोग हो जाता है और जब नकारात्मक रूप से अपना प्रभाव दर्शाता है तो दैन्य योग का निर्माण करता है अर्थात जातक की ज़िंदगी को दयनीय स्थिति में खड़ा कर देता है। आइये जानते हैं कब यह शुभ फलदायक होता है और ऐसी कौन सी स्थियाँ हैं जिनमे यही योग विपरीत फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाता है ….

जब परिवर्तन योग हो जाता है महायोग

जब दो राशियों के स्वामी पर स्पर एक दुसरे के घर में स्थित हो जाएँ तो इसे परिवर्तन योग कहा जाता है। यदि इस प्रकार का राशि परिवर्तन शुभ भावों के बीच हो तो अत्याधिक शुभ माना जाता है। राशि परिवर्तन करने वाले गृह केंद्र अथवा त्रिकोण के स्वामी हों या एक गृह केंद्र और दूसरा त्रिकोण का मालिक हो तो यह योग निर्मित होता है। वैदिक ज्योतिष में इस प्रकार के योग को महायोग की संज्ञा दी गयी है। इस महायोग को राजयोग भी कहा जाता है।

पंच महापुरुष योग    

जब परिवर्तन योग हो जाता है दैन्य योग

जब जन्मपत्री में किसी शुभ भाव का स्वामी छह, आठ अथवा बारहवें भाव के साथ राशि परिवर्तन करले तो यहाँ दैन्य योग का निर्माण हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि केंद्र अथवा त्रिकोण भाव का मालिक छह, आठ अथवा बारहवें भाव के स्वामी के साथ राशि परिवर्तन करले तो दैन्य योग बनता है। इस योग को शुभ नहीं माना जाता। इस प्रकार का योग निर्मित करने वाले गृह अपनी दशा अन्तर्दशा में अशुभ फल प्रदान करते हैं।

जब परिवर्तन योग हो जाता है खलयोग

खलयोग को खपाने वाल योग भी कहा जाता है। इसका सम्बन्ध तीसरे भाव से होता है। यदि तीसरे भाव के स्वामी कुंडली के किसी शुभ भाव से राशि परिवर्तन करते हैं तो इस योग का निर्माण हो जाता है। जैसे तीसरे भाव के स्वामी नवें भाव में स्थित हो जाएँ और नवें भाव के स्वामी तीसरे भाव में स्थित हो जाएँ तो खल योग निर्मित होता है। तीसरे अथवा नवें भाव के स्वामी की दशा अन्तर्दशा में जातक/जातिका को भाग्य के लिए खपना पडेगा अथवा खूब दौड़ धुप के बाद शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।

इस प्रकार से आपने जाना जब दो शुभ स्थानों के स्वामी आपस में राशि परिवर्तन करते हैं तो महायोग का निर्माण होता है। जब यही राशि परिवर्तन एक शुभ और एक अशुभ भाव के बीच होता है तो दैन्य योग बनता है। इसी प्रकार जब तीसरे भाव के स्वामी और किसी अन्य शुभ भाव के बीच यह राशि परिवर्तन होता है तो खलयोग की निर्मिति कही जाती है।

आज आपने जाना की परिवर्तन योग किस प्रकार से हमारे जीवन पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों प्रकार के फल प्रदान करने में सक्षम होता है। ऐसे ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण ज्योतिष विषयों को लेकर फिर से आपके समक्ष प्रस्तुत होंगें। आपके सुझाव और सवाल दोनों हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। पर अपना स्नेहशीर्वाद इसी प्रकार बनाये रखियेगा। नमस्कार।