गृह और उनके दिशा बल

गृह और उनके दिशा बल

ग्रहों के दिशा बाल के बारे मे विचार कर ने से पूर्व आपको एक बहुत महत्वपूर्ण बात बताते चलें की भिन्न भिन्न लग्न कुंडलियों में भिन्न भिन्न शुभ अशुभ एवं समगृह होते हैं। सभी ग्रहों को अलग अलग दिशा में एक ख़ास प्रकार का बल प्राप्त होता है जिसे दिशा बल कहा जाता है। इस प्रकार जो गृह शुभ होते हैं वे और अधिक शुभ हो जाते हैं और इसी प्रकार जो गृह अशुभ होते हैं उनकी अशुभता में और अधिक वृद्धि हो जाती है। फिलहाल आपको इस बात पर ही ध्यान केंद्रित कर ना है की कौन कौन से ग्रहों को किस किस दिशा में दिशा बाल प्राप्त होता है। आगे चलकर आप को भिन्न भिन्न लग्न कुंडलियों के कारक, मारक और समग्रहों की जानकारी प्रदान की जायेगी और ये गृह किस प्रकार जातक के जीवन को प्रभावित करते हैं यह भी बताया जाएगा।

गृह और उनके दिशा बल  

सूर्य

सम्पूर्ण जगत की आत्मा सूर्य एक अग्नि तत्व गृह हैं। इन्हें दक्षिण दिशा में स्थित होने पर दिशा बल प्राप्त होता है। कुंडली का दसवां भाव दक्षिण दिशा माना जाता है। दिन के बारह बजे सूर्य दक्षिण दिशा में आ जाता है। इस समय सूर्य का प्रभाव सबसे अधिक प्रबल होता है

चंद्र

मन के कारक चन्द्रमा को एक जल तत्व गृह के रूप में जाना जाता है। चंद्र देवता को उत्तर दिशा में दिशा बल प्राप्त है। यह कुंडली का चौथा भाव होता है। जातक/जातिका को प्राप्त होने वाले अनेक प्रकार के सुखों की जानकारी इसी भाव से देखि जाती है।

मंगल

शारीरिक बल और पराक्रम के कारक मंगल देवता को भी दसवें भाव में दिशा बल प्राप्त होता है। यदि मंगल लग्न कुंडली में एक शुभ गृह हों तो दसवें भाव में स्थित होने पर उनकी शुभता में औरअधिक वृद्धि हो जाती है। इन्हें दक्षिण दिशा में दिशा बल प्राप्त होता है।

बुध

प्रुथ्वो तत्व बुद्ध गृह का सम्बन्ध बुद्धि से कहा गया है। बुद्धदेव को जन्म कुंडली के प्रथम भाव यानी पूर्व दिशा में दिशा बाल प्राप्त होता है। यदि बुद्ध लग्न कुंडली में एक शुभ गृह हों तो प्रथम भाव में स्थित होने पर उनकी शुभता में और अधिक वृद्धि हो जाती है।

गुरु (ब्रहस्पति)

आकाश तत्व देव गुरु वृहस्पति का सम्बन्ध ज्ञान से कहा गया है। यदि गुरु लग्न कुंडली में एक शुभ गृह हों तो प्रथम भाव में स्थित होने पर उनकी शुभता में और अधिक वृद्धि हो जाती है। पूर्व दिशा में गुरु को दिशा बाल प्राप्त होता है।

शुक्र

सभी प्रकार के ऐशो आराम के कारक शुक्र देवता एक जल तत्व गृह हैं। इन्हें जमकुन्डली के चौथे भाव यानी उत्तर दिशा में दिशाबल प्राप्त है।

शनि

न्याय के देवता शनि देव एक वायु तत्व गृह हैं। शनि देव को पश्चिम दिशा में दिशा बल प्राप्त होता है। यदि जन्म कुंडली में शनिदेव शुभ गृह हों और सातवें भाव में स्थित हों इनकी शुभता में और अधिक वृद्धि हो जाती है।