घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में द्वादश की दिव्य गाथा

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग – 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में द्वादश की दिव्य गाथा

शिवभक्तों की यात्रा का अंतिम, लेकिन अत्यंत पावन और रहस्यमय पड़ाव है – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह 12 शिव ज्योतिर्लिंगों में द्वादश यानी बारहवाँ और समापन स्थल है, जो न केवल आध्यात्मिक परिपूर्णता का प्रतीक है, बल्कि यह भक्ति, समर्पण और त्याग की कहानी भी कहता है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं के समीप स्थित है और इसका मंदिर घृष्णेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा घृष्मा नामक एक महान शिवभक्त महिला से संबंधित है:

  • प्राचीन काल में सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण था, जिसकी पत्नी घृष्मा अत्यंत शिवभक्त थी।
  • वह प्रतिदिन जल से शिवलिंगों का निर्माण कर उनका पूजन करती और उन्हें जल में विसर्जित कर देती।
  • उसका यह तप देख कर उसका पुत्र स्वयं नारकीय प्रवृत्तियों में फँस गया और एक दिन उसके द्वारा उसकी माँ के सामने ही अपमानजनक कार्य किए।
  • दु:खी होकर उसका पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो गया। लेकिन घृष्मा ने फिर भी शिव की भक्ति नहीं छोड़ी, न विलाप किया, न क्रोध किया — बल्कि और भी श्रद्धा से शिव का पूजन करती रही।
  • उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उसके पुत्र को जीवित कर दिया
  • तब शिव ने कहा, "घृष्मा, तुम्हारी भक्ति अमर है, इस स्थान पर मैं स्वयं 'घृष्णेश्वर' के रूप में निवास करूंगा।"

इस प्रकार भगवान शिव यहाँ घृष्मा की भक्ति के कारण स्वयं प्रकट हुए और यह स्थान घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कहलाया।

घृष्णेश्वर मंदिर की विशेषताएँ

  • यह मंदिर मल्हारराव होलकर की पत्नी और अहिल्याबाई होलकर द्वारा पुनर्निर्मित कराया गया था।
  • इसका निर्माण दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में हुआ है, जिसमें नक्काशीदार खंभे और सुंदर पत्थरों की कलाकृति प्रमुख है।
  • मंदिर का गर्भगृह भूमिगत है, जहाँ शिवलिंग स्थापित है।
  • यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहाँ महिलाओं को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति है, जो इसे और भी विशेष बनाता है।

घृष्णेश्वर – भक्ति की चरम सीमा

घृष्णेश्वर का महत्व केवल शिवलिंग के रूप में नहीं, बल्कि एक भक्त के आंतरिक त्याग और प्रेम की प्रतिमूर्ति के रूप में है। यहाँ की कथा सिखाती है कि—

  • भक्ति केवल क्रिया नहीं, भावना है
  • सच्ची श्रद्धा में न कोई शर्त होती है, न कोई प्रतिफल की आकांक्षा।
  • शिव भावग्रह हैं, वे केवल हृदय की गहराई को देखते हैं।

श्रावण मास और पर्वों की महिमा

  • श्रावण मास, महाशिवरात्रि, और सोमवार को यहाँ विशेष उत्सव होता है।
  • भक्तजन विशेष अभिषेक और रुद्रपाठ करते हैं।
  • यहाँ आने वाले श्रद्धालु एलोरा की गुफाओं और कैलाश मंदिर का भी दर्शन करते हैं, जिससे यात्रा एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक अनुभव बन जाती है।

घृष्णेश्वर – पूर्णता की अंतिम सीढ़ी

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवभक्ति की वह अंतिम मंज़िल है जहाँ:

  • संघर्ष में भी समर्पण की शक्ति होती है।
  • नारी शक्ति की आराधना स्वयं शिव करते हैं।
  • और जहाँ शिव स्वयं कहते हैं —
    “जहाँ भक्ति होती है, वहीं मैं प्रकट होता हूँ।”

घृष्णेश्वर की कथा में है शक्ति और श्रद्धा की एकरसता।
यहाँ शिव केवल पूज्य नहीं, बल्कि भक्त की परीक्षा में साथ देने वाले मित्र भी हैं।
यह ज्योतिर्लिंग यात्रा का पूर्ण समापन नहीं, बल्कि नये आत्मिक उत्थान की शुरुआत है।