ॐ : अर्थ, प्रभाव और महत्व

ॐ (ओंकार) शब्द मात्र एक ध्वनि नहीं है, यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड की गूंज है, अनादि और अनंत की प्रतीक ध्वनि है। यह शब्द वेदों का मूल है, समस्त मंत्रों का सार है और आध्यात्मिक साधना का आधार है।
जब आधुनिक विज्ञान हर वस्तु, विचार और तत्व का विश्लेषण करता है, तो कई धार्मिक मान्यताएँ परख के दायरे में आ जाती हैं। परंतु यह भी सत्य है कि विज्ञान धीरे-धीरे उन्हीं सनातन सिद्धांतों की पुष्टि करता जा रहा है, जिनका उल्लेख हमारे शास्त्रों और वेदांत में हजारों वर्षों पूर्व हुआ था।
ॐ ध्वनि को भारतीय संस्कृति में ‘प्रणव’ कहा गया है। इसका अर्थ है – वह ध्वनि जो प्रत्येक प्राणी, कण और ऊर्जा में अनवरत गूंजती रहती है। यह ध्वनि कहीं उत्पन्न नहीं होती, न ही किसी टकराव से बनी होती है, इसलिए इसे ‘अनाहत नाद’ कहा गया है।
ॐ शब्द की संरचना
ॐ तीन ध्वनियों से मिलकर बना है — अ, उ, और म्।
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‘अ’ का उच्चारण कंठ से होता है – यह सृष्टि का आरंभ है।
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‘उ’ का उच्चारण हृदय में स्पंदन करता है – यह पालन का प्रतीक है।
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‘म्’ का उच्चारण नाभि में कंपन उत्पन्न करता है – यह संहार का द्योतक है।
ये तीन ध्वनियाँ क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के प्रतीक माने जाते हैं। साथ ही, यह भूः, भुवः, और स्वः लोकों को भी दर्शाता है।
ॐ का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रभाव
प्राचीन काल से तपस्वियों और ऋषियों ने ध्यान की गहन अवस्था में जिस ध्वनि को अनुभव किया, उसे ही ‘ॐ’ कहा गया। यह ध्वनि न केवल शरीर के भीतर, बल्कि ब्रह्मांड के हर कण में गुंजती है।
विज्ञान भी अब यह मान रहा है कि ध्वनि कंपन (Vibrations) का हमारे शरीर, मस्तिष्क और चक्रों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ॐ के उच्चारण से –
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मस्तिष्क शांत होता है
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रक्तचाप नियंत्रित होता है
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फेफड़ों और हृदय की कार्यक्षमता बढ़ती है
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मानसिक तनाव और विकार दूर होते हैं
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रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है
मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु से होता है, जो शरीर की ग्रंथियों को सक्रिय करता है। इन ग्रंथियों का संतुलन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
उच्चारण की विधि और लाभ
ॐ का जप प्रातःकाल या शांत वातावरण में किया जाना चाहिए। पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठकर इसका उच्चारण करें।
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5, 7, 10 या 21 बार उच्चारण करें
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धीरे-धीरे और लयबद्ध रूप से बोलें
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चाहें तो जपमाला का उपयोग करें
लाभ :
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मन और मस्तिष्क एकाग्र होता है
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दिल की धड़कन और रक्त संचार नियंत्रित होता है
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कार्यक्षमता और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है
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सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है
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मानसिक शांति एवं आध्यात्मिक उन्नति मिलती है
ॐ : धर्म से परे एक सार्वभौमिक सत्य
ॐ किसी एक धर्म का प्रतीक नहीं है। यह वह ध्वनि है जो तब से है जब न कोई धर्म था, न कोई समाज। यह मानवता का मूल है।
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हिन्दू धर्म में – ॐ वेदमंत्रों का आरंभ है
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बौद्ध धर्म में – "ओं मणि पद्मे हूं" से
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सिख धर्म में – "इक ओंकार"
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इस्लाम में – "आमीन"
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ईसाई धर्म में – "आमेन"
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अंग्रेज़ी में – "Omni" शब्द का प्रयोग सर्वव्यापकता के लिए किया जाता है
इससे स्पष्ट होता है कि ॐ सम्प्रदाय से ऊपर, समस्त मानव जाति के लिए शांति, शक्ति और आत्मजागरण का साधन है।
ॐ और सनातन धर्म का संबंध
सनातन धर्म जिसे हम हिन्दू धर्म भी कहते हैं, उसका मूल आधार वेद हैं, और वेदों का मूल नाद ॐ है। यह धर्म किसी व्यक्ति, समय या स्थान से शुरू नहीं हुआ। यह अनादि है, नित्य है, और शाश्वत है। यह जीवन जीने की कला है, दर्शन है और अनुभव का विज्ञान है।
‘ॐ’ के माध्यम से आत्मा और परमात्मा का मिलन संभव है। गायत्री मंत्र हो या महामृत्युंजय मंत्र, सभी का प्रारंभ इसी परम ध्वनि से होता है।
निष्कर्ष
ॐ केवल एक अक्षर नहीं है, यह चेतना की गूंज है। यह आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा का आरंभ है। जो मनुष्य नियमित रूप से ॐ का जप करता है, वह न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करता है, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी उच्च चेतना का अनुभव करता है।
इसलिए, यह कहना पूर्णतः उचित है कि ॐ सम्पूर्ण मानवता के कल्याण का मंत्र है, जो धर्म, जाति या मत से परे एक वैश्विक और ब्रह्मांडीय सत्य है।