शनि ग्रह रहस्य वैदिक ज्योतिष

शनि ग्रह रहस्य वैदिक ज्योतिष

सूर्य पुत्र शनिदेव वैदिक ज्योतिष में कर्म फलदाता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ऐसी मान्यता है की शनिदेव सभी भूजीविओं देवताओं तक के कर्मों का अच्छा बुरा फल समय आने पर प्रदान करते हैं। न्याय के देवता शनि को संन्यास का ज्ञान कारक भी कहा जाता है। कुंडली में शुभस्थित होने पर सभी प्रकार की सुख समृद्धि प्रदान करने वाले सभी बाधाओं को दूर करने में पूर्णतया सक्षम माने जाते हैं। सभी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व शनिदेव करते हैं। जिनका आचरण उचित ना हो उन्हें शनिदेव के प्रकोप से कोई नहीं बचा सकता है। शनि की साढ़ेसाती व्ढैया में प्राणी मात्र को उनके अच्छे बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। शनि मकर, कुंभ राशियों के स्वामी हैं, जो तुला राशि में उच्च और मेष राशि में नीच के हो जाते हैं। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार शनि के प्रकोप से बचाने की क्षमता किसी में नहीं है। यदि आप होश में जीते हैं, जाने अनजाने किसी का अशुभ नहीं करते, खूब परिश्रम करते हैं तो सत्य जानिये की शनि देव की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी। शनिदेव का शुभरत्न नीलम व्रंगनीला , काला है। मकर राशि एक वैश्य वर्ण राशि है वहीँ कुम्भ शूद्रवर्ण है।

शनि ग्रह राशि, भाव और विशेषताएं

            राशि स्वामित्व : मकर, कुम्भ

            दिशा : पश्चिम

            दिन : शनिवार

            तत्व: वायु

            उच्च राशि : तुला

            नीच राशि : मेष

            दृष्टि अपने भाव से: 3, 7, 10

            लिंग: पुरुष

            नक्षत्र स्वामी : पुष्य , अनुराधा व उत्तरा भाद्रपदा

            शुभ रत्न : नीलम

            महादशा समय : 19 वर्ष

            मंत्र: ऊँ शं शनैश्चराय नम:

शनि ग्रह के शुभफल; प्रभाव कुंडली

लग्न कुंडली में शुभ स्थित शनि धर्म परायण, न्यायप्रिय, धैर्यवान व्यक्तित्व प्रदान करते हैं, समाज में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सहायक होते हैं व्बंजर भूमि से लाभ पहुंचाते हैं और मकान, वाहन, संपत्ति का सुख प्रदान करते हैं। आध्यात्मिक उन्नति के साथ साथ शनिदेव बुजुर्गों प्रतिष्ठित व्यक्तियों के स्नेह व्कृपा का पात्र बनाते हैं, संतान का आशीर्वाद देते हैं वाद विवाद में विजय श्री ऐसे जातक के कदम चूमती है।

शनि ग्रह के अशुभ फल; प्रभाव कुंडली

लग्न कुंडली में यदि शनिदेव अशुभ स्थित हों तो मानप्रतिष्ठा में कमी आती है, भूमि, कंस्ट्रशन संबंधी कार्यों में असफलता मिलती है, प्रतिष्ठा धूमिल होती है, भूमि, कंस्ट्रशन संबंधी कार्यों में असफलता मिलती है और मकान, वाहन, संपत्ति के सुख में कमी आती है। आध्यात्मिक अवनति के साथसाथ बीमारियां लगती हैं, शुभ कार्यों में विलम्ब होता है, ऐसा जातक डिप्रेशन का शिकार हो सकता है, बुरी संगत में पड़ जाता है और ऐसे जातक को हर समय कोई न कोई चिंता सताती रहती है। व्यर्थ के वाद विवाद में उलझना पड़ता है और हार का मुँह देखना पड़ता है।

शनि शांति के उपाय; रत्न

किसी कारणवश कुंडली में शनि शुभ होकर बलाबल में कमजोर होतो नीलम रत्न धारण करना चाहिए। नीलम के अभाव में नीली का उपयोग किया जाता है। कोई भी रत्न धारण करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान की सलाह आवश्य लें। यदि जन्म कुंडली में गुरुमारक होतो करें ये उपाय शनिवार का व्रत रखें, नित्य शनिदेव के मंत्र की एक माला आवश्य करें (संध्याकाल में अवश्य करें ), कामगारों मजदूरों से मधुर संबंध रखें, तायाजी व् अन्य बुजुर्गों का सम्मान करें, आशीर्वाद लें, सात्विक भोजन ग्रहण करें उड़द की दाल का दान करें, किसी जरूरतमंद बुजुर्ग को लाठी , छाता दान करें